यही मैं पूछ रहा हूँ कि कुछ जीवों को विशेष प्रेम करने का क्या औचित्य और क्या पैमाना है? अगर प्रेम करना है तो सबसे करो! किसी को मित्र और किसी को भोजन करार देने की मनमानी विचारधारा पर ही मैं प्रश्नचिन्ह लगा रहा हूँ। शास्त्रों में क्या लिखा है और क्या नहीं, इन सबका प्रतिपादन हम केवल अपने बचाव के लिए और अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए ही करते हैं। वास्तव में, सत्य को विकृत करने में हम अधिक पारंगत हैं।
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