घमंडी मुर्गा....
एक गांव में एक कूड़े के ढेर पर दो मुर्गे बैठे थे। उनमे किसी बात पर आपस में लड़ाई हो गई और दोनों आपस में गुत्थमगुत्था हो गए। अधिक तगड़े मुर्गे ने दूसरे को पराजित कर भगा दिया तो आस—पास घूम रही मुर्गियांँ विजयी मुर्गे के चारों ओर जमा होकर उस का यशोगान करने लगी। प्रशंसा से पुलकित मुर्गे की यश कामना और तेज हुई। उसने कहा कि पास— पड़ोस में भी उसकी कीर्ति जानी जाए और गायी जाए। इस तीव्र आकांक्षा ने उसे प्रेरित किया और वह पास के खलिहान में चढ़ गया। अपने पंख फड़फड़ा कर उच्च स्वर में बोला —"मैं विजयी मुर्गा हूं। मुझे देखो। मेरे समान बलवान कोई अन्य मुर्गा नहीं है।" उसका अंतिम वाक्य समाप्त होने के पूर्व ही मंडराती चील की दृष्टि, उस मुर्गे पर पड़ी उसने एक झपट्टा मारा और पंजों में दबोचकर मुर्गे को अपने घोंसले में ले गई ।
बहुत अच्छा
Thanks