कोथली सामण की आया करती....
बूड्ढी बैट्ठी घर के बाहरणे छोरी पतासे बाट्टण आई
करले दादी मुह नैं मिट्ठा मेरी मां की कोथली आई
बूड्ढी बोल्ली के खाउं बेट्टा घर की बणी या चीज कोन्या
सारे त्योहार बाजारु होगे ईब पहले आली तीज कोन्या
कोथली तो वा होवै थी जो म्हारे टैम पै आया करती
सारी चीज बणा कै घरनै मेरी मां भिजवाया करती
पांच सात सेर कोथली मैं गुड़ की बणी सुहाली हो थी
गैल्या खांड के खुरमें हो थे मट्ठी भी घर आली हो थी
सेर दो सेर जोवे हों थे, जो बैठ दोफारे तोड्या करती
पांच सात होती तीळ कोथली मैं जो बेटी खातर जोड़्या करती...
एक बढिया तील सासू की, सूट ननद का आया करता
मां बांध्या करती कोथली मेरा भाई ले कै आया करता
हम ननद भाभी झूल्या करती झूल घाल कै साम्मण की
घोट्या आली उड़ै चुंदड़ी लहर उठै थी दाम्मण की...
डोलै डोलै आवै था भाई देख कै भाज्जी जाया करती
बोझ होवै था कोथली मैं छोटी ननदी लिवाया करती
बैठ साळ मैं सासू मेरी कोथली नैं खोल्या करती
बोझ कितना सै कोथली मैं आंख्या ए आंख्या मैं तोल्या करती...
फेर पीहर की बणी वे सुहाली सारी गाल मैं बाट्या करती
सारी राज्जी होकै खावै थी कोए भी ना नाट्या करती
कोथली तो ईब भी आवै सै गैल्या घेवर और मिठाई
पर मां के हाथ की कोथली सी मिठास बेबे कितै ना पाई....
इतना कहते ही ..बुढिया के आंखों में पानी आ गया... पुराने टाइम आल्या टाइम पता नही फेर कद आवैगा...