शरिया अदालते ....

in #mgsc6 years ago

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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक आदेश जारी किया है .... इस आदेश के अनुसार वो भारत के हर जिले में शरीयत अदालतें खोलना चाहता है ....
शरीयत अदालतों या शरीयत कानून का इतिहास तो वैसे बहुत लंबा चौड़ा है .... लेकिन मैं इतिहास में ज्यादा पीछे ना जाते हुए पिछले 28-30 वर्षों के शरीयत अदालतों के क्रूरतम इतिहास से आपको अवगत करवाता हूँ ....
सन्दर्भ दक्षिण एशिया का है .... एक छोटे से इस्लामिक मुल्क अफगानिस्तान का ....
1990 से पूर्व तक अफगानिस्तान एक खुशहाल और धार्मिक उदारवादी एवं सहिष्णु मुल्क हुआ करता था .... यहां की फ़िज़ाओं में अमन चैन हुआ करता था .... अफगानिस्तान के नागरिक ज्यादा धार्मिक कट्टर नहीं थे .... महिलाओं पे भी यहां कोई विशेष धार्मिक या मज़हबीय पाबंदियां नहीं थी .... महिलाओं को अन्य इस्लामिक कंट्रीज के मुकाबले अफगानिस्तान में ज्यादा धार्मिक स्वायत्तता और अधिकार प्राप्त थे ....
किंतु .... वर्ष 1990 में अफगानिस्तान में एक धार्मिक मज़हबी कट्टरपंथी विचारधारा का उदय हुआ .... इस विचारधारा/पद्धति को दुनियां तालिबान नाम से जानती है .... तालिबान का उदय कैसे किन परिस्थितियों में हुआ .... और उसके बाद अफगानिस्तान जैसे धार्मिक उदारवादी मुल्क का क्या हश्र हुआ ये समझिए ....
तालिबान आंदोलन (طالبان) जिसे तालिबान या तालेबान के नाम से भी जाना जाता है .... एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आन्दोलन है .... जिसकी शुरूआत 1994 में दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में हुई थी ....
तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है .... जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी (छात्र) .... अर्थात ऐसे छात्र जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं .... तालिबान इस्लामिक कट्टपंथी राजनीतिक आंदोलन हैं .... इसकी सदस्यता पाकिस्तान तथा अफ़ग़ानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलती है ....
1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला उमर देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता था .... उसने खुद को हेड ऑफ सुप्रीम काउंसिल घोषित कर रखा था ....
तालेबान आन्दोलन को सिर्फ पाकिस्तान .... सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने ही मान्यता दे रखी थी .... अफगानिस्तान जैसे खुशहाल और धार्मिक उदारवादी मुल्क को पाषाणयुग में पहुँचाने के लिए तालिबान को जिम्मेदार माना जाता है ....
1990 की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उदय माना जाता है .... इस दौर में सोवियत सेना अफगानिस्तान से वापस जा रही थी ....
पश्तून आंदोलन के सहारे तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी जड़े जमा ली थी .... इस आंदोलन का उद्देश्य था कि लोगों को धार्मिक मदरसों में जाना चाहिए .... इन मदरसों का खर्च सऊदी अरब द्वारा दिया जाता था ....
1996 में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के अधिकतर क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया .... 2001 के अफ़ग़ानिस्तान युद्ध के बाद तालिबान लुप्तप्राय हो गया था .... पर 2004 के बाद इसने अपनी गतिविधियाँ दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में बढ़ाई है ....
फरवरी 2009 में तालिबान ने पाकिस्तान की उत्तर-पश्चिमी सरहद के करीब स्वात घाटी में पाकिस्तान सरकार के साथ एक समझौता किया है .... इस समझौते के तहत तालिबान शासन लोगों को मारना बंद करेंगे और इसके बदले उन्हें शरीयत के अनुसार काम करने की छूट मिलेगी ....
तालिबान ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पश्तून इलाकों में वायदा किया था कि .... अगर वे एक बार सत्ता आते हैं तो सुरक्षा और शांति कायम करेंगे .... वे इस्लाम के साधारण शरिया कानून को लागू करेंगे ....
हालाँकि कुछ ही समय में तालिबान लोगों के लिए सिरदर्द साबित हुआ .... शरिया कानून के तहत महिलाओं पर कई तरह की कड़ी पाबंदियां लगा दी गई थी .... सजा देने के वीभत्स तरीकों के कारण अफगानी समाज में इसका विरोध होने लगा ....
तालिबान ने शरिया कानून के मुताबिक अफगानी पुरुषों के लिए बढ़ी हुई दाढ़ी .... और महिलाओं के लिए बुर्का पहनने का फरमान जारी कर दिया था .... टीवी .... म्यूजिक .... सिनेमा पर पाबंदी लगा दी गई .... दस वर्ष की उम्र के बाद लड़कियों के लिए स्कूल जाने पर मनाही थी ....
तालिबान ने 1996 में शासन में आने के बाद लिंग के आधार पर कड़े कानून बनाए .... इन कानूनों ने सबसे ज्यादा महिलाओं को प्रभावित किया ....
अफगानी महिला को नौकरी करने की इजाजत नहीं दी जाती थी .... लड़कियों के लिए सभी स्कूल कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दरवाजे बंद कर दिए गए थे .... किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना घर से निकलने पर महिला का बहिष्कार कर दिया जाता है .... पुरुष डॉक्टर द्वारा चेकअप कराने पर महिला और लड़की का बहिष्कार किया जाएगा .... इसके साथ महिलाओं पर नर्स और डॉक्टर्स बनने पर पाबंदी थी ....
तालिबान शासन के किसी भी आदेश का उल्लंघन करने पर महिलाओं को निर्दयता से पीटा और मारा जाएगा ....
तालिबानी इलाकों में शरीयत का उलंघन करने पर बहुत ही क्रूर सजा दी जाती है .... एक सर्वे के मुताबिक 97% अफगानी महिलाएं डिप्रेशन की शिकार है ....
घर में गर्ल्स स्कूल चलाने वाली महिलाओं को उनके पति बच्चों और छात्रों के सामने गोली मार दी जाती है ....
प्रेमी के साथ भागने वाली महिलाओं को भीड़ में पत्थर मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता था ....
गलती से बुर्का से पैर दिख जाने पर कई अधेड़ उम्र की महिलाओं को पीटा जाता था ....
पुरुष डॉक्टर्स द्वारा महिला रोगी के चेकअप पर पाबंदी से कई महिलाएं मौत के मुंह में चली गई ....
कई महिलाओं को घर में बंदी बनाकर रखा जाता था .... इसके कारण महिलाओं में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ने लगे ....
ये कुछ ही विभत्स उदाहरण लिखे हैं मैंने तालिबानी शासन या मानसिकता के .... शरीयत कानून (लॉ) के ....
ये हिंदुस्तान है अफगानिस्तान नहीं .... ना हिंदुस्तान कोई इस्लामिक कंट्री है .... फिर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यहां तालिबानी या शरियति लॉ क्यों लागू करना चाहती है ?? ....
क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और भारतीय मुसलमान हिंदुस्तान को भी अफगानिस्तान की तरह गर्त में धकेलना चाहते हैं ?? ....
हिंदुस्तान एक रिपब्लिक कंट्री है .... हमारा अपना संविधान है .... अदालतें हैं .... जज वकील है .... नियम कायदे कानून है .... आई.पी.सी. है .... सी.आर.पी.सी. है ....
भारतीय संविधान ने तो देश के नागरिकों को संविधान प्रदत्त ये हक तक दे रखा है कि .... संविधान किसी भी मजहब अथवा व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं में दखल नहीं देगा ....
फिर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा हर जिले में अलग से शरीयत अदालतें खोलने का फरमान क्यों ?? ....
भारत में अब मुगलिया सल्तनत नहीं है .... ना मुगल बादशाहों का शासन है .... बेहतर है जितना जल्दी हो सके मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस सच्चाई को स्वीकार कर के अपनी हद में रहना सीख जाए ....
हमारे मुल्क की लोकतांत्रिक सत्ता के समानांतर दूसरी सत्ता हमें कबूल नहीं !!!! ....

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Bhai is article ke bare me kuch bataye इस्लाम में बताया गया तीन तलाक का सही तरीका, जो ज्यादातर मुसलमान नहीं जानते https://steemit.com/muslims/@sam786/2cwk7c