सत्य और असत्य तो हमारी माया और मान्यता से ही खड़ा होता है, और वह एक सापेक्ष संकल्पना ही है, जिसका कोई आधार नहीं होता सत्य और असत्य के गुढ़ रहस्यों को जाने और समझे मेहता जी अच्छी पोस्ट है, आपकी
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