अपने हृदयों को श्रद्धा से परिपूर्ण करो। केवल मुँह से श्रद्धा का नाम न लो, वरन् अपने रोम-2 में श्रद्धा भरो। अपने मन और वाणी को एक बनाओ अपने आचरणों को पवित्र करो। अपने लक्ष्य की सिद्धि में तन्मय होकर लग जाओ। अपने जीवन को यहाँ तक धर्ममय बनाओ कि लोग तुम्हें धर्म की निस्पृहता की, लोक सेवा की अनन्यता की सात्विक श्रद्धा एवं भक्ति की चलती फिरती मूर्ति समझने लगें। अटल श्रद्धा का ही दूसरा नाम भक्ति है।
मेहता जी आपका ये ब्लॉक हमे अच्छा लगा धन्यबाद
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