समाज-सेवा : प्रभु-सेवा (अंतिम भाग # २) | Community Service : God Service (Final Part # 2)
एक बार ब्रह्मर्षि याज्ञवल्क्य से मैत्रेयी ने परम ज्ञान देने की प्रार्थना की । मैत्रेयी उनकी बड़ी पत्नी थी, एवं ज्ञान पिपासा उसमें प्रबल थी । ऋषि ने बताया कि जिस प्रकार एक नमक की डली घुलकर एक गिलास पानी में व्याप्त हो जाती है वह फिर दिखती नहीं है किन्तु होती अवश्य है और उस पानी को चखकर उसका प्रभाव ज्ञात किया जा सकता है इसी प्रकार परमात्मा भी संसार में सबमें व्याप्त है किन्तु इन स्थूल नेत्रों से दृष्टिगत नहीं हो सकता । अत: सबको उपकार के कार्यों में लगकर पारस्परिक सहयोग की वृति रखनी चाहिए । परोपकार की वृत्ति द्वारा हम किसी पर अहसान नहीं करते अपितु हम सबका हित भी इसी में निहित है । हम परोपकार करके वस्तुत: समाज का हित तो प्रत्यक्ष रूप से करते हैं किन्तु अंतत: वह कार्य या वृत्ति हमारे लिए ही हितकर साबित होती है, क्योंकि समाज के हित में ही हमारा व्यक्तिगत हित समाया हुआ है । इस धारणा के अनुसार भारतीय समाज में उपकार और सेवा व सहयोग आदि भावों को प्रमुखता प्राप्त है । मैत्रेयी ने आगे प्रश्न किया कि “फिर क्या बाधा है, जो कि लोग परोपकार में नहीं लग पाते ?” ऋषि ने उत्तर दिया कि “स्वार्थ ही सबसे बड़ी बाधा है जो कि परोपकार में बाधा पैदा कर देता है । प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने हित का चिन्तन एवं सम्पादन करने में इतना मग्न हो जाता है कि वह दुसरे का अहित करते भी नहीं चुकता और इस प्रकार स्वार्थ साधन में अन्धे होकर, पर अहित करते हुए सब एक-दुसरे का अहित करने लगते हैं । समाज दुःखी बन जाता है । परोपकार को हानि पहुंचती है । व्यक्ति स्वयं के हित के मात्र चिन्ता जब करता है तब इसका तात्पर्य अन्तत: यह होता है कि मात्र वह एक अपना हित-चिन्तक रहता है बाकी सब उसके निकट के लोग भी उसके अहित-चिन्तक रहते हैं । जब एक हित-चिन्तक हो तथा अनेक अहित-चिन्तक हों तो निश्चित रूप से दुःख-वृद्धि होगी । जीवन दु:खमय हो जाएगा । ठीक इसके विपरीत जब मानव स्वार्थ त्याग कर दुसरे का हित साधन ही अपना कर्त्तव्य समझ कर समाज में व्यवहार करता है तो उस समाज में उसके स्वयं के अतिरिक्त समस्त अन्य सामाजिक उसके हित चिन्तक रहते हैं । उसके सुख-दुःख में साथी बनते हैं । कठिनाई में सहयोगी होते हैं । एक के स्वार्थ त्याग पर अनेक हितचिन्तकों के होने पर समाज में पारस्परिक सदभावना और सहयोग व स्नेह की वृद्धि होती है । सामूहिक सुख बढ़ता है ।” भगवान महावीर के पश्चात आधुनिक युग में महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । जब इन्होंने व्यक्तिगत हित को त्याग कर सामाजिक हित को ही अपना हित समझा तो समूचा समाज ही उनका हो गया । अत: अपना हित भी इसी में है कि हम समाज की सोचें । समाज में स्नेह हो, सदभावना व सहयोग हो और प्रत्येक में सेवा व उपकार की भावना हो । व्यक्ति का स्वयं का हित भी इसी में अन्तत: सन्निहित है ।
समाज में सहयोग की इसलिए आवश्यकता रहती है कि सब समय एक-सा व्यतीत नहीं होता है । समय के साथ शारीरिक शक्ति एवं समृद्धि में अन्तर आ जाता है तब दुसरे की सदभावना, स्नेह व सहयोग की प्राय: अनिवार्यता उत्पन्न होती है । साथ ही समाज में सबकी क्षमता एक-सी नहीं होती । प्रत्येक की क्षमता भिन्न है । प्रत्येक की बौद्धिक शक्ति एक-सी नहीं । प्रत्येक की शारीरिक शक्ति में अन्तर है । समाज में सभी युवा हों ऐसा भी नहीं है । यहां बच्चे और बूढ़े भी हैं । स्त्रियां हैं, उसमें दु:खी विधवाएं भी हैं । गरीब हैं, बीमार हैं, कम बुद्धि वाले निम्न श्रेणी के लोग भी हैं । इस प्रकार समाज में उसका एक भाग पीड़ित, दु:खी है व सहायता की अपेक्षा रखता है । उसे सदभावना, सहयोग और स्नेह की आवश्यकता होती है । इनकी पीड़ा अवश्य दूर होनी चाहिए । उनके दर्दों पर अवश्य मरहम लगना चाहिए । उन्हें अवश्य सहयोग मिलना चाहिए । तभी समाज स्वस्थ रहेगा, सुखी बनेगा । कष्टों से मुक्त होगा । गरीबी, बुढ़ापा व बीमारी का शिकार समाज में समयानुसार कोई भी हो सकता है अत: सभी को अपने हृदय में दुसरे के लिए सदभाव व सहयोग का भाव रखना चाहिए । यह मानव धर्म है । तुलसीदास जी के शब्दों में –
इसके अतिरिक्त समाज में समय-समय पर दहेज प्रथा, बालविवाह, छूत-अछूत भाव, शिक्षा का अभाव आदि अनेक बुराइयां पैदा हो जाती हैं । इन्हें दूर कर समाज को प्रगतिशील बनाने के प्रयास निरंतर चलते रहने चाहिए । ये सभी कार्य समाज में तभी निरंतर हो सकते हैं जबकि समाज में लोग स्वार्थरहित हों । उनमें परोपकार के भाव हों, उत्साह के साथ उनमें प्रगतिशीलता हो । तभी समाज का उपकार होगा । दुःख दूर होगा । सामूहिक सुख समृद्धि में वृद्धि होगी । कोई दुःख न होगा । समाज प्रगति करेगा । उसका संगठन दृढ़ बनेगा । सुख-शान्ति का साम्राज्य होगा । दरिद्रनारायण की सेवा होगी ।
इससे जुडी पिछली पोस्ट का लिंक है -
The English translation of this post by Google language tool as below:
Once, Brahmarshi Yajnavalkya, Maitreya prayed to give supreme knowledge. Maitrei was his elder wife, and the knowledge of Pipasa was strong in that. Rishi said that just as the salt of a salt spreads in the face of a glass of water, it does not appear again, but it must be done and it can be known by tasting that water. In this way God is also present in all over the world. Can not be visible with these macro eyes Therefore, in the work of goodwill, the growth of mutual cooperation should be maintained. We do not care for anyone by the benevolence of philanthropy, but all of us have the interest in this too. In fact, by doing charity we really do the good of society directly, but ultimately that work or instinct is beneficial for us only because our personal interest is included in the interest of society. According to this belief, expressions like service and cooperation in Indian society are prominent. Maitreya further questioned, "What is the obstacle, which people can not find in philanthropy?" Rishi replied that "selfishness is the biggest obstacle that creates obstacles in philanthropy. Every person becomes so absorbed in thinking and editing his own interest that he does not even harm others, and thus being blind in selfish means, but by doing harm, they start harming each other. Society becomes sad. Charity is harmed. When a person is concerned only for his own interest, then it implies that it is only that he remains one of his own interests and everybody else who is close to him is also an ill-informed person. When there is a well-intentioned person and there are many non-anxieties, there will definitely be sadness increase. Life will be miserable. On the contrary, after abandoning human selfishness and treating others' interests as their duty, they behave in the society, then in that society, all other socials in addition to their own self are concerned. He becomes a partner in his happiness and misery. Have difficulty in collaborating. On the sacrifice of one's self, there is an increase in mutual goodwill and cooperation and affection in the society, due to the interests of many well wishers. The collective happiness increases. "In the modern era of Lord Mahavira, Mahatma Gandhi, Swami Vivekananda, Swami Dayanand etc. are a direct example. When he discarded personal interests and considered social interest to be of his own interest, the entire society itself became his. Therefore, it is in our interest that we think of society. There is peace in society, goodwill and cooperation, and each has a sense of service and kindness. The person's own interest is ultimately embedded in this.
Cooperation in society therefore requires that there is not a single lapse all the time. There is a difference between physical strength and prosperity over time, and the indispensability of the other person's goodwill, affection and cooperation often arises. At the same time, everyone has no capacity in society. The ability of each is different. Not everyone has the intellectual power. There is a difference in the physical power of each. Not everyone is young in society. There are also children and old people here. There are women, there are sorrowful widows. There are also poor, sick, low-level people with low intelligence. In this way, one part of the society is suffering, suffering and expecting help. It requires goodwill, cooperation and affection. Their pain must surely be far away. Their pain must be symptomatic. They must definitely get support. Only then will the society be healthy and will be happy. Will be free of pain. Poverty, old age, and disease can be a victim in the society, so everyone should have a sense of harmony and cooperation for others in their heart. It is human religion. In the words of Tulsidas ji -
In addition, in society, dowry system, child marriage, untouchability, lack of education, etc., from time to time, many evils arise. Efforts should be made to make society progressive by removing them and making them progressive. All these works can only be sustained in society, whereas people in society are selfless. They have the values of benevolence, they have progression with enthusiasm. Only then will the society be favored. Sadness will be far away. The collective happiness will increase in prosperity. There will be no grief. Society will progress His organization will be firm Peace will be the empire of peace. Will be the service of the poor.
This is really a great post. I really love this line "In this way God is also present in all over the world. Can not be visible with these macro eyes " you are right. God is also present but we can not see him with our this naked eyes or macro eyes like you said but we can see his handwork
बहुत अच्छे से समझाया है आप ने लकिन आज के समय में हर अच्छाई और बुराई को व्यवसाय की तरफ से देखा जाता है ,कोई समाज के लिए कुछ करना चाहता है,या करता है तो उसके रास्ते में रोड़े अटका दिए जाते है की ये फ्री में कर दे गा तो हमरा पैसा नहीं बनेगा.लकिन हमे अपने समाज सेवा वाली भावना के साथ ही काम करना चाहिए , कुछ लोग है जो इस काम को बड़े अच्छे से अंजाम दे रहे है.
Agar aap logo ki sewa krte hai.ye bhi ek vardan hota hai jo har kisi ko nahi milta hai.
Give and take ....Win win situation theory always help at both end
स्वामी विवेकानंद आपने सब कुछ त्याग दिया था। सिर्फ दूसरो के लिए।
प्रणाम मेहता जी
"इंसान के प्रत्येक सवाल का जवाब इस कुदरत के पास है.. बशर्ते इंसान अपने प्रश्न का उत्तर खोजने में कितना चिंतित है ये भी एक बड़ा सवाल है"
मेहता जी आप इस के बारे में क्या कहेंगे
Thoughts :- " Dream big or go home "
इसको मैं अपनी सभी पोस्ट में प्रयोग करता हूं।
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सिर्फ इस एक लाइन को पढ़कर मैं ये कहना चाहता हूँ कि बड़ा सोचना चाहिए इसमें कुछ गलत नहीं है परन्तु घर छोड़ने के पक्ष में नहीं हूँ. घर (विदेश न जाकर) पर रहकर भी कुछ बड़ा किया जा सकता है.
सच कहा आपने इसलिए मैंने घर पर रहकर ही कुछ करने का मन बनाया है। रही बात इस दोहे की तो इसका मतलब किन्ही भिन्न बातों को स्पष्ठ करना था।
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मेहता जी आपका कार्य सराहनीय है। क्या आप हम जैसे भारतीयों की मदद कर सकते है। जो steemit पर जुड़ कर कुछ पैसे कमाना चाहता हो। और खुद की एक पहचान बनाना
चाहता हूं।
आपकी अति कृपा होगी
@anmanpathak जी.
steemit पर लगभग सभी पैसा कमाना चाहते है पर इसके लिए किसी को कहने की जरुरत नहीं है. आप अपना कार्य करते रहिए और सीखते रहिए, पैसा तो अपने आप एक दिन आ ही जाएगा.
आप बताइए आपको कैसी मदद चाहिए? कुछ अच्छा हो सकता है तो कोई ऐतराज नहीं है.
फिलहाल तो मैं आपको कोई तरीका नही बता सकता आप बड़े हो , परंतु अगर आप खुद से कोई तरीका निकाल कर सिर्फ मेरा ही नही बल्कि उन तमाम भारतीयों की मदद कर सके तो मेरे ख्याल से इससे उत्तम कार्य कोई नही हो सकता इस कम्युनिटी में आपके द्वारा।
हम लोग सदैव आपके ऋणी रहेंगे
मेहता जी , आपके विचार बहुत अच्छे है।जिससे हमें प्रेरणा मिलती है कि जीवन जीने का क्या महत्व है।कि हम अपनी लाइफ के साथ -साथ अपने देश की सेवा भी कर के
सकते है।हेड सॉफ। मेहता जी।
@mehta
स्वार्थी इंसान को छोड़ देना चाहिए क्योंकि उसमें सुधार की गुंजाइश न के बराबर होती है!
अंदर से हर इंसान स्वार्थी होता है हमें इस बात को समझ लेना चाहिए, अन्यथा हम पूरी जिंदगी लोगों पर स्वार्थी होने का दोष मंडते रह जाएंगे।
Such hai sir Sab Apna Apka swarth dekhte hai
Support me india
Agar aap jivit logon ki seva karte hain wohi bhagwan seva hoti h
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आज के बदलते युग में लोग इस प्रकार व्यावार कर रहे हे जेसे इस संसार में सचाई इमानदारी सहायता जेसा कुछ हे ही नहीं बस किसी तहर अपना काम निकालो और अपना किया फायदा हे यही देखते चाहे उस से किसी कुछ नुक्सान कियो न हो आज के व्यापारिक युग में निस्वार्थ सेवा जेसे लुप्त होता जा रहा हे कभी कभी तो इंसान अपने लोभ में इतना डूब गया हे की वो अपनो को भी नुक्सान पहुंचा सकता हे
आपकी बात सत्य है परन्तु इसका मतलब ये कतई नहीं है कि हम अपने अच्छे कार्य करना बंद कर दे. हमें अपने सही कार्य करते रहने चाहिए.
एकदम सत्य कहा आपने कोई कुछ भी करे परन्तु हमे अपने अच्छे कार्य करने चाहिए और हम सभी को ये भी ध्यान में रखना चाइये की हम जो कर्म करेगे उसके प्राश्चित भी हमे इसी धरती पर करना होगा।सचाई इमानदारी के रास्ते कठिन जरूर होते है पर वही रास्ते हमारे लिए अच्छे होते है और दोस्तो में स्टीमीट में नया हूँ तो मेरी पोस्ट भी पढ़ें और अच्छी लगे तो upvote भी करे धन्यवाद दोस्तो
समाज में दया ,सहयोग ,प्रेम आदि आवश्यक तत्वो का भाइयो के स्वभाव में सम्मिश्रण होने से समाज में होने वाले सकारत्मक बदलावों के बारे में आपने बहुत खुश अच्छा बताया है ,धन्यवाद
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नि:स्वार्थ भाव से की मानव सेवा प्रभु सेवा के समान ही है
पीड़ित मानवता की सेवा ही प्रभु सेवा है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कमाई का कुछ अंश निर्धन और निर्बलों में व्यय करना चाहिये। इससे परोपकार करने वाले का जीवन सुखी रहता है। यह आपका ब्लॉक बहुत ही अच्छा है मेहता जी आपके विचार बहुत अच्छे है आप चाहे तो हमारे ब्लॉक पर भी उप्वॉट कर सकते है दन्यवाद मेहता जी
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