जो शख्स कभी सवा सौ साल जीना चाहता था और अपनी चाहत के लिए पूरी तरह आश्वस्त भी था। महज 78 वसंत के बाद ही उसकी हिम्मत टूट-सी गई है। बापू अब जीना नहीं चाहते। अपने जन्मदिन से एक दिन पहले एक अक्टूबर, 1947 को बापू शाम की प्रार्थना में कहते हैं, भगवान मुझे अपने पास बुला ले। वह अपने प्यारे देश को हर दिन बर्बाद होता नही देख सकते। वह चाहते हैं सब कुछ खत्म हो, उससे पहले ही उनकी आंखे यह सब देखना बंद कर दें।
आखिरी जन्मदिन पर बापू क्या कर रहे थे?दो अक्टूबर, 1947 की तारीख आने से कुछ घंटे पहले से ही गांधी आत्म शुद्धि के लिए चौबीस घंटे का व्रत शुरू कर चुके हैं। स्वतंत्र भारत में अपने पहले जन्म दिवस के दिन गांधी जी रोज की तरह ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं। नित्य क्रियाएं खत्म करके वह चरखा चलाते हैं फिर गीता के श्लोक पढ़ने के बाद ध्यान में लीन हो जाते हैं। ध्यान करते वक्त वह शायद 78 बरस पहले का दिन सोच रहे हैं, जब वह पोरबंदर में पैदा हुए थे। वह अपनी माता पुतलीबाई की प्रसव पीड़ा को भी याद कर रहे हैं। निश्चित तौर पर उनके दिमाग में 1876 के उस दिन की स्मृतियां कौंध रही हैं, जब उन्होने पहली बार राजा हरिश्चंद्र पर आधारित नाटक देखा था और उससे खूब प्रभावित हुए थे। उसी दिन मोहनदास के मन में यह खयाल आया था। कि हरिश्चंद्र की तरह हर कोई सत्य का पुजारी आखिर क्यों नहीं हो सकता? कस्तूरबा से विवाह और इंग्लैड जाकर वकालत की पढ़ाई, जीवन के हर अहम मोड़ को उन्होने याद किया। हां, दक्षिण अफ्रीका की रेलगांड़ी में हुए अपने साथ दुर्व्यवहार को वह भला कैसे भूल सकते हैं। 1915 में भारत वापसी के बाद के अपने प्रत्येक संधर्ष को वह याद कर रहे हैं।
बापू की तबीयत ठीक नहीं है। वह थोडी-थोड़ी देर बाद खांस रहे हैं। हालांकि यह उनका पहला जन्मदिन नही है, जब उनकी तबीयत खराब रही हो। पचासवें जन्मदिन पर तो साबरमती में उनकी हालत इस कदर बिगड़ गयी थी कि उनके पुत्रों को टेलीग्राम से सूचित किया गय़ा कि उन्हें अपने पिता के पास आना चाहिए। लेकिन तब गांधी मरना नहीं चाहते थे, तब ईश्वर से उनकी प्रार्थनाएं और अपेक्षाएं अलग थी और आज बिल्कुल अलग है।
दिन चढ़ने के साथ कई लोग उन्हें जन्मदिन की बधाई देने के लिए आ रहे हैं। लोग उन्हें आजाद भारत का राष्ट्रपिता कहकर संबोधित कर रहे हैं। गवर्नर-जनरल माउंटबेटन अपनी लेडी एडविना के साथ पधारे हैं। देश के उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल उन लोगों में शामिल हैं, जो सबसे पहले सुबह ही शुभकामना संदेश के साथ बापू के पास पहुंचे हैं। प्रधानमंत्री नेहरू, उद्योगपति जीडी बिरला, राजकुमारी अमृत कौर, मुस्लिम-सिख समुदायों के शीर्ष नेता और कैबिनेट के अन्य सदस्यों ने बापू लोगों की शुभकामनाओं की फीकी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। शाम की प्रार्थना के वक्त बापू अपने अनुयायियों को संबोधित करते हुए कहते हैं, मै जबसे भारत लौटा हूं, तभी से मैने देश में सांप्रदायिक सौहार्द बनाने को अपना काम मान है। लेकिन आज हर कोई एक-दूसरे का दुश्मन बन बैठा हैं। मेरी सभी कोशिशें बेकार गई। मुझे नहीं लगता कि अब मेरे जीने की कोई भी वजह बची है। मैंने सवा सौ साल जीने का ख्वाब छोड़ दिया है। मैं आज से अपने 79वें साल में प्रवेश कर रहा हूँ और यह मुझे दर्द दे रहा है। अगर आप लोग सच में मेरा जन्मदिन मनाना चाहते हैं, तो आप अपने मन से एक-दूसरे के प्रति नफरत मिटा दें। मैं आपसे बस यही चाहता हूं। ईश्वर हमारे साथ हैं। ........
-- वी राममूर्ति की पुस्तक महात्मा गांधी द लास्ट 200 डेज के अंश ।