भारत सरकार के बाद इस देश में भूमि का सबसे बड़ा अकेला मालिक है 'चर्च', इस समय समूचे भारत में 'चर्च' के पास 52 लाख करोड की भू-सम्पत्ति है । इसमें से लगभग 50 प्रतिशत जमीन उसके पास अंग्रेजों के समय से है, लेकिन बाकी की ज़मीन तमाम केन्द्र और राज्य सरकारों ने उसे धर्मस्व कार्य हेतु 'दान' में दी है। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि धर्म के नाम पर सबसे अधिक रक्तपात इस्लाम और ईसाई धर्मावलम्बियों द्वारा किया गया है।
चर्च की सम्पत्ति : वर्तमान भारत में चर्च की कुल सम्पत्ति 13,71,000 करोड़ है जिसमें खाली पड़ी ज़मीन शामिल नहीं है, यह राशि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 60% से भी ज्यादा है, इसे भी बढ़ाकर 2025 तक 40,00,000 करोड़ अर्थात 40 नील रुपये किया जाना प्रस्तावित है।
झूठ
ईसाईयत धर्म है।
बाईबल धर्मग्रंध है ।
पादरी ब्र्रह्मचारी होता है।
सेवा करते हैं ईसाई ।
सच
ईसाईयत चंडाल का पंथ है।
बाईबल बकवास है ।
पादरी व्यभिचारी होता है ।
सेवा का उद्देश्य धर्मान्तरण है ।
पूरी दुनिया को ईसाई बनाने की योजना : वर्तमान में ऐसी 1590 योजनाएँ चल रही हैं जो कि सन् 2025 तक बढ़कर 3000 हो जायेंगी । सन् 2025 के 'प्रोजेक्शन' के अनुसार बढ़ोत्तरी इस प्रकार की जायेगी ।
वर्तमान 35500 ईसाई संस्थाएँ बढ़कर 63000, धर्म परिवर्तन के मामले 35 लाख से बढ़कर 53 लाख, 4100 विभिन्न मिशनरी संस्थाएँ बढ़कर 6000, 56 लाख धर्मसेवकों की संख्या बढ़ाकर 65 लाख किया जाना है । जो कि पूरे यूरोप की समूची सेना से भी ज्यादा संख्या है । 'चर्च' दुनिया की सबसे बड़ी रोज़गार निर्माता 'कम्पनी' है। 5 लाख लोग प्रतिवर्ष रिटायर हो जाते हैं, उससे अधिक की नई भर्ती की जाती है । जिस तरह विशाल कम्पनियों में 'बिजनेस प्लान' बनाया जाता है, ठीक उसी तरह रोम में ईसाई धर्म के प्रचार के लिये 'वार-प्लान' बनाया जाता है । भारत पोप के लिये सबसे 'सस्ता बाजार' है ।
ईसाईयत क्या है...?
केवल 2,000 वर्ष पुराने ईसाई धर्म का मुख्य धर्म ग्रन्थ बाइबिल है । जीसस क्राइस्ट को ईसाईयत का गॉड माना जाता है। परन्तु जीसस क्राइस्ट ने अपने जीवनकाल में ईसाईयत की स्थापना नहीं की थी। वे एक यहूदी थे और अंत तक यहूदी ही रहे। उनकी मृत्यु के बाद सेन्टपाल आदि लोगों ने ईसाईयत का वर्तमान स्वरुप दिया।
क्या बाइबिल में ईश्वर का दैवी ज्ञान है..?
लिखा है ''बाइबिल का हर एक पवित्र शास्त्र ईश्वर की प्रेरणा से रचा गया है''(2 टिमोथी: 3: 16)
बाइबिल (न्यू टेस्टामेंट) में मुख्यतया सेन्ट पॉल एवं उसके साथियों की पुस्तकों की प्रधानता है तथा इसके कुछ लेखक विवादास्पद हैं । इस तरह बाइबिल विभिन्न मनुष्यों द्वारा, विभिन्न कालों में, विभिन्न स्थानों में, विभिन्न परिस्थितियों में लिखी गई 66 पुस्तकों का संग्रह मात्र है जिन्हें कि सन् 397 में 1131 लोगों ने पाँच वोट के बहुमत के द्वारा चुनकर ईसाईयत का धर्मशास्त्र एवं धर्म विधान बनाया । वास्तव में बाइबिल पूरी तरह मनुष्यकृत है । इसीलिए इसमें अनेेक अवैज्ञानिक एवं 2,000 परस्पर विरोधी वचन हैं।
''मैंने पचास और साठ वर्षों के बीच बाइबिल का अध्ययन किया तो तब मैंने यह समझा कि यह किसी पागल का प्रलाप मात्र है ।'' -थामस जैफरसन (अमेरिका के तीसरे राष्ट-पति)
''बाइबिल ईश्वर के दैवी ज्ञान का प्रकाश नहीं है । यह ईश्वरीय प्रेरणा पर आधारित नहीं, वरन् दुष्टता पर आधारित पुस्तक है । आज तक प्रकाशित किसी भी पुस्तक की तुलना में यह कहीं अधिक पीड़ा और यातना के लिए उत्तरदायी है ।'' -जोसेफ लूइस (एस.एफ. रीजन के सम्पादक)
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