जैविक लिंग पर्यावरण के साथ संपर्क रखता है, इसे पूरी तरह समझा नहीं जा सका है।[6] दो जुड़वा लड़कियों के जन्म के समय अलग कर और फिर दशकों बाद उन्हें एक करने के बाद चौंकाने वाली समानताएं और विभिन्नताएं दोनों देखी गई है।[7] 2005 में इमोरी विश्वविद्यालय के किम वालेन ने लिखा है,"मुझे लगता है कि'प्रकृति बनाम प्रकृति' का सवाल सार्थक नहीं है, क्योंकि यह उन्हें स्वतंत्र कारक के रूप में देखती हैं, जबकि वास्तव में सब कुछ प्रकृति और पोषण में है।" वालेन ने लिखा है कि लिंग भेद बहुत जल्दी उभर कर आता है और पुरुषों और महिलाओं की अपनी गतिविधियों में अंतर्निहित वरीयता के जरिये तय होता है। लड़कियां खिलौने और अन्य उन वस्तुओं को साथ रखती हैं, जो उन्हें पसंद हैं, जबकि ज्यादा संभावना रहती है कि लड़के "वह सब करें जो वे कुशलता से कर सकते हैं या करना होता है।"वालेन के अनुसार, इसके बावजूद लड़कियां कैसा शैक्षणिक प्रदर्शन करेंगी, इसमें उम्मीदों की कोई भूमिका नहीं होती. उदाहरण के लिए, यदि गणित में कुशल महिलाओं से कहा जाये कि यह परीक्षण "लिंग निरपेक्ष है", तो उच्च अंक प्राप्त कर सकेंगी, लेकिन अगर उनसे कहा जाये कि अतीत में पुरुषों ने महिलाओं से बेहतर प्रदर्शन किया है तो महिलाएं बदतर प्रदर्शन करेंगी. वालेन ने कहा है, "क्या अजीब बात है," शोध के अनुसार, सभी को जाहिर तौर पर अब तक समाजिक जीवन में गणित में कमजोर दिखी एक महिला से यह कहना होगा कि गणित की परीक्षा लिंग निरपेक्ष है और दिखेगा कि समाजीकरण के सभी प्रभाव दूर हो जायेंगे".[8] लेखक जूडिथ हैरिस ने कहा कि उनके आनुवंशिक योगदान से अलग मां-बाप के पोषण का प्रभाव बच्चों के साथियों के समूह जैसे वातावरण संबंधी अन्य पहलुओं की तुलना में कम दीर्घावधि प्रभाव पड़ता है।[9]
इंग्लैंड में, राष्ट्रीय साक्षरता ट्रस्ट की ओर से कराये गये एक अध्ययन से पता चला है कि लड़कियां सात साल की उम्र से सभी शैक्षिक क्षेत्रों में लड़कों से अधिक अंक पाती है, हालांकि 16 वर्ष से पढ़ने और लिखने के कौशल में काफी अंतर दिखाई दिया है।[10] ऐतिहासिक रूप से, मानकीकृत परीक्षणों पर लड़कियां पीछे हो जाती हैं। 1996 में SAT की मौखिक परीक्षा में सभी जाति की 503 अमेरिकी लड़कियों ने लड़कों की तुलना में 4 अंक कम पाये थे। गणित में, लड़कियों का औसत 492 था, जो लड़कों के मुकाबले 35 अंक था। "कॉलेज के बोर्ड के एक शोध वैज्ञानिक वेन कैमेरा ने टिप्पणी की "जबकि लड़कियों ने ठीक एक ही पाठ्यक्रम लिया था","35 अंकों का अंतर थोड़ा खराब लगता है।" इसी समय सेंटर फॉर वूमेन पॉलिसी स्टडीज के अध्यक्ष आर वोल्फ ने कहा कि लड़कियों ने गणित की परीक्षा में अलग अंक इसलिए हासिल किया कि वे समस्याओं को दूर हटाना पसंद करती हैं, जबकि लड़के "टेस्ट टेकिंग ट्रिक्स" (प्रयोगशाला में शीशे की पाइप के जरिये किये जाने वाले परीक्षणों की तरह) जैसे अनेक विकल्पों वाले प्रश्नों के उत्तरों की जांच करते हैं, जो प्रश्न के साथ ही दिये गये होते हैं। वोल्फ ने कहा लड़कियां शांत और संपूर्ण रवैया अपनाती हैं, जबकि लड़के "एक पिन बॉल मशीन की तरह इस टेस्ट को खेलते हैं।" वोल्फ ने यह भी कहा कि हालांकि लड़कियों को सैट स्कोर कम मिले, पर उन्हें लगातार कॉलेज के पहले साल में सभी पाठ्यक्रमों में लड़कों की तुलना में उच्च ग्रेड मिले.[11] 2006 तक SAT के मौखिक वाले भाग में लड़कियों ने लड़कों से 11 अंक ज्यादा पाये.[12] 2005 में शिकागो विश्वविद्यालय की ओर से किये गये एक अध्ययन से पता चला है कि कक्षा में उपस्थिति के मामले में लड़कियों की ज्यादा संख्या की वजह से लड़कों की तुलना में उनकी शैक्षिक अकादमिक प्रदर्शन अच्छा होता है।"[13]
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